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आज 12 जून को विश्व बालश्रम निषेध दिवस के अवसर पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग अध्यक्ष राजेश श्रीवास्तव के मार्गदर्शन और निर्देशन में श्रम विभाग, महिला एवं बाल विकास और पुलिस प्रशासन ने संयुक्त रूप से अभियान चलाकर बाल श्रम को रोकने की अपील की। दूसरी ओर नीलू स्व सहायता समूह की अध्यक्ष नीलू सिंह ने नन्हें बच्चों से होटल, दुकान, कारखाना या अन्य व्यवसायिक संस्थान में कोई भी काम न कराने की अपील की।
नीलू सिंह ने छोटे बच्चों को मास्क, कॉपी, पेन और बिस्कुट वितरण करते हुए उनके अच्छे भविष्य की कामना की। नीलू ने कहा कि बाल श्रम के खिलाफ जागरूकता फैलाना जरूरी है। समाज को इस संबंध में जागरूक होना पड़ेगा, ताकि लोग समझ सके कि बाल मजदूरी देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। बच्चों को बाल श्रमिक बनाने की बजाय उन्हें शिक्षित करने अभियान चलाने की जरूरत है।
दुकान, होटल, कारखाना एवं बाजारों में बाल श्रम को रोकने हेतु जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया
इधर, न्यायिक मजिस्ट्रेट / व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव राहुल शर्मा ने बताया कि हर साल 12 जून को पूरी दुनिया में विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। मुख्य उद्देश्य लोगों को 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम न कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने के लिए जागरूक करना है। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत की विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से कहता है कि 14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्ट्री या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और ना ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा। बच्चों को स्वस्थ तरीके से स्वतंत्र व सम्मानजनक स्थिति में विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाएगी।
फैक्ट्री कानून 1948 में कानून 14 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्ट्री में तभी नियुक्त किए जा सकते हैं जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गई है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। कोई भी व्यक्ति जो 14 साल से कम उम्र के बच्चे से काम कराता है या 14 से 18 वर्ष के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय में काम देने पर 6 महीने से 2 साल तक की जेल की सजा हो सकती है। साथ ही 20 हजार से 50 हजार रुपए तक का जुर्माना भी हो सकता है।
बच्चों के माता-पिता/ अभिभावकों को अपने बच्चों को इस कानून के विरुद्ध काम करने की अनुमति देने के लिए सजा नहीं दी जा सकती है लेकिन अगर किसी 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को व्यवसाय के उद्देश्य से काम कराया जाता है या फिर किसी 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रिया में काम करवाया जाता है तो यह प्रतिरक्षा लागू नहीं होती और उन्हें सजा दी जा सकती है।
इन कानून के अलावा और भी ऐसे अधिनियम है (जैसे फैक्ट्रीज अधिनियम, शिपिंग अधिनियम, मोटर परिवहन, श्रमिक अधिनियम इत्यादि) जिनके तहत बच्चों को काम पर रखने के लिए सजा का प्रावधान है पर बाल मजदूरी करवाने के अपराध के लिए अभियोजन बाल मजदूर कानून के तहत ही होगा। आज व्यापारियों और ठेकेदारों से इस आशय का बांड भरवाया गया कि भविष्य में उनके द्वारा कभी भी 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के काम नहीं कराया जाएगा और किसी को 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम करवाते देखने पर रोका जाएगा और उसकी शिकायत की जाएगी। आयोजन में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी लोकेश पटले व श्रम विभाग और पुलिस अधिकारी उपस्थित थे।