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20 वें साल में मिला… खालिस छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री, राज्य की परंपरा-संस्कृति और समग्र विकास का पुरोधा नायक बना हमारा मुखिया

कभी गेड़ी पर चलकर मन मोहा, तो कभी उत्साह से थाम लिया राउत नाचा का डंडा

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छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के 20 वें साल में प्रदेशवासियों ने नए मुख्यमंत्री को देखा। न सिर्फ देखा बल्कि अपने राज्य की परंपरा और संस्कृति के पुरोधा नायक को भी देखा। 30 साल पहले राजनीति में कदम रखने वाले भूपेश बघेल ने न सिर्फ मुख्यमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियां निभाई हैं, बल्कि खालिस छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री की छबि गढ़ने में कामयाब रहे। गांव देहात में बसी इस प्रदेश की बड़ी आबादी ने महसूस किया कि राज्य का मुखिया उनके जैसा ही है। एकदम आम आदमी।

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बीते दिनों मुख्यमंत्री निवास में विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा समाज के सदस्य मुख्यमंत्री को जन्मदिन की बधाई देने पहुँचे। बैगा परिवार के एक नन्हें बच्चे को सीएम ने गोद में लेकर दुलारते हुए अपनी हथेली पर बच्चे को खड़ा कर दिया।

जो कभी भौंरा चलाता है तो कभी बैलगाड़ी की सवारी करने लगता है। कभी गाय के लिए चारा काटने जुट जाता है तो कभी कबीरधाम जिले के सुदूर इलाकों से आए बैगा परिवार के बच्चे को अपनी हथेली पर खड़ा कर लेता है। गोवर्धन पूजा, हरेली, पोला जैसे त्योहारों में एकदम आम छत्तीसगढ़िया की तरह तिहार भी मनाता है प्रदेश का सबसे ताकतवर शख्स। राज्य के लोगों ने बीते एक साल में विकास से कोसों दूर जंगलों के बीच रहने वाले गरीब आदिवासियों की फिक्र करने वाले सीएम को भी देखा है, और बेरोजगारी, कुपोषण जैसी समस्याओं से निबटने के साथ अन्नदाताओं को फसल का भरपूर दाम दिलाते हुए भी देखा है।

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एक बात और,,, 20 वें साल में छत्तीसगढ़ की सरकार बीते सालों की तरह सिर्फ रायपुर और नवा रायपुर की ऊंची, जगमग करती इमारतों तक सीमित नहीं रही। हर गांव-देहात में पूरी सरकार बार-बार दिखती रही। नरवा, गरुवा, घुरुवा अऊ बारी से किसान, आदिवासी, मजदूर, गरीब की फिक्र करती रही प्रदेश सरकार। ग्रामीण इलाकों में आर्थिक क्रांति लाने की दिशा में जुटी रही पूरी सरकार।

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छत्तीसगढ़ के पुरखों ने दशकों पहले एक विराट सपना देखा था –छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का सपना। 1 नवंबर 2000 को यह सपना साकार हुआ। शुक्रवार को यह सपना पूरे 20 साल का हो जाएगा। पूरी तरह छत्तीसगढ़िया अंदाज में मनाया जाएगा राज्योत्सव। मोहरी के धुनों के बीच लोक कलाकार प्रदर्शन करते दिखेंगे। अरपा-पैरी के धार, महानदी है अपार का आख्यान सुनकर मंत्रमुग्ध होंगे। सचमुच अब पुरखों का सपना साकार होने लगा है। छत्तीसगढ़ी अस्मिता पहली बार पूरे शबाब पर नजर आ रही है।

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हरेली तिहार, गोवर्धन पूजा और मातर जैसे त्योहारों पर प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल ने जिस तरह शिरकत की, उससे यहां की उपेक्षित होती रही परंपरा, संस्कृति फिर से सजीव हो उठीं। राज्य का मुखिया मड़ई-मेला में भी वक्त गुजारते हैं। चेहरे पर परेशानियों की सिलवटें लिए गरीब किसानों के कंधे पर हाथ रखकर यह एहसास दिलाने की कोशिश होती है कि उनका मुखिया, प्रदेश का सबसे ताकतवर शख्स, राज्य का मुख्यमंत्री उनके साथ खड़ा है।

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सीएम हाउस में आए दिव्यांग युवक के साथ सेल्फी के दौरान आत्मीयता भरी मुस्कुराहट।

बीते 10 महीने में जिस तरह सरकार ने हर वर्ग के लिए बेहतरी योजनाओं का क्रियान्वयन तेजी से किया है और सच्चे मायनों में लोकतंत्र का विकेंद्रीकरण करते हुए सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों और अफसरों को ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचाया है, उससे एक उम्मीद बंधी है। उम्मीद है कि प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर छत्तीसगढ़ राज्य की गोद में खेलने वाले ढाई करोड़ लोगों की जिंदगी में खुशहाली जरूर आएगी। बीते 19 साल में पुऱखों का देखा गया सपना कहीं खो गया था। अब लगने लगा है कि वो सपना जरूर पूरा होगा।

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