ग्रामीण उन्हें डॉक्टर दीदी कहते हैं। जाटलूर के गांवो तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है और संचार के साधन भी कम हैं। वे जाटलूर सहित पदमेटा, रासमेटा, कारंगुल,  लंका और अन्य गांवों के ग्रामीणों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचा रही हैं। अबूझमाड़ के ग्रामीण कोरोना टीकाकरण को लेकर जागरूक नहीं हैं। काफी समझाने के बाद ही तैयार होते हैं।
कविता पात्र बताती है कि ओरछा ब्लॉक के लंका गांव तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों से होकर, भैरमगढ़ मार्ग से एक दिन में पहुंच सकते हैं। अगर ओरछा से लंका पहुंचना है तो दो से तीन दिन लगते हैं। कई बार उन्हे दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों से होकर जाना पड़ता  है। जाटलूर सहित अन्य गांवों तक पहुंचने के लिए नदी-नाले, घने जंगल, पहाड़ी, पथरीले रास्तों से होकर जाना पड़ता है। जाटलूर से प्रत्येक गांव की दूरी 20 से 25 किलोमीटर है।

ऐसे में डिलीवरी और बच्चों को टीका लगाने में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । गर्भवती महिलाओं को इमरजेंसी के समय वहीं उचित इलाज मुहैया कराने की कोशिश करती हैं। ज्यादा गंभीर मरीजों को कावड़ के सहारे ओरछा मुख्यालय तक ग्रामीणों की मदद से ले जाया जाता है। कविता कहती है कि सेवा के दौरान ग्रामीणों का जो प्यार उन्हें मिलता है, उससे उनकी सारी तकलीफें दूर हो जाती है।