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नगर निगम के ठेकेदार अगर काम में ढिलाई करें तो ब्लैक लिस्टेड करने की कार्रवाई होती है। बीते दिनों में कई ठेकेदारों को ब्लैक लिस्टेड भी किया गया है। मगर 147 करोड़ के अमृत मिशन प्रोजेक्ट का ठेका लेने वाले लक्ष्मी कंस्ट्रक्शन कंपनी के खिलाफ आज तक कार्रवाई नहीं की गई। पिछले तीन-चार साल से कंपनी की लगातार ढिलाई के बावजूद नगर निगम प्रशासन ने कोई एक्शन नहीं लिया। कंपनी की लापरवाही से जगह-जगह गड्ढे खोदने और बार-बार पानी सप्लाई अवरुद्ध होने से आम जनता त्रस्त है। इसके बावजूद कंपनी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
लापरवाही, लेटलतीफी और मनमानी करने वाली यह कंपनी नागपुर की है। राज्य में बीजेपी की सरकार के कार्यकाल में अमृत मिशन का ठेका राजधानी से जारी हुआ और कंपनी को ठेका देने का फैसला भी राजधानी में ही किया गया। तकरीबन हर दिन ढेरों मनमानियां करने वाली इस कंपनी के खिलाफ न तो कलेक्टर डॉ सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने कार्रवाई की है, न नगर निगम कमिश्नर हरेश मंडावी ने कंपनी की मनमानी पर नकेल कसने का कोई उपक्रम ही किया है। अगर किया भी है, तो कंपनी पर इसका कोई असर नहीं हुआ है। कंपनी ने कलेक्टर या कमिश्नर की परवाह नहीं की है।
सवाल ये है कि अब तक कंपनी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई न करने की वजह क्या है ? ? ?
अब बात करें विधायक अरुण वोरा और महापौर धीरज बाकलीवाल की। शहर के दोनों जनप्रतिनिधियों ने लक्ष्मी कंस्ट्रक्शन कंपनी और प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग कर रहे पीडीएमसी के अफसरों की आए दिन क्लास ली है। दर्जनों बार कड़ी फटकार लगाई हैं। महापौर के चैंबर से लेकर खुली सड़क पर इन अफसरों को कड़े निर्देश और चेतावनी दी गई है। इसके बावजूद समस्या ज्यों की त्यों है। कंपनी के अफसर पूरी तरह निरंकुश और बेलगाम होकर काम कर रहे हैं। सच्चाई ये है कि कंपनी के अफसर आम जनता को लगभग रोज परेशान कर रहे हैं।
हाल ये है कि लक्ष्मी कंस्ट्रक्शन कंपनी के अफसर किसी भी वार्ड में बिना नगर निगम को सूचना दिये गड्ढे खोदाई करवा रहे हैं। इन कार्यों के कारण वार्ड में पानी सप्लाई बंद हो रही है। नगर निगम के जलकार्य विभाग को पानी सप्लाई बंद होने की भनक तक नहीं लग रही। नागरिकों द्वारा पानी सप्लाई न होने की शिकायत करने पर जल कार्य विभाग को वास्तविक स्थिति का पता चलता है। कुल जमा हालत ये है कि गलती लक्ष्मी कंस्ट्रक्शन कंपनी करती है और पानी सप्लाई न होने का ठीकरा नगर निगम के जलकार्य विभाग पर फूटता है।
सवाल ये है कि इतनी लापरवाही और मनमानी के बावजूद कंपनी पर कार्रवाई नहीं की गई ???
अभी हाल ही में विधायक अरुण वोरा ने 58 लाख की लागत से यूनिशेड निर्माण कार्य में लेटलतीफी पर नाराजगी जताते हुए निर्माण स्थल से ही नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ शिव डहरिया को फोन कर दिया। दो दिन बाद विधायक वोरा ने मंत्री के निवास पर जाकर इसी मामले की दोबारा शिकायत कर दी। आधे करोड़ के प्रोजेक्ट में चंद महीने की लेटलतीफी पर शिकायत की गई, लेकिन 147 करोड़ का प्रोजेक्ट लेने वाली कंपनी की कई साल से लापरवाही और मनमानी की शिकायत मंत्री से नहीं की गई। कंपनी को ब्लैकलिस्टेड किया गया। आए दिन नल न खुलने से हलाकान आम जनता ये सवाल कर रही है कि कंपनी पर इतनी मेहरबानी किसलिये ???
अमृत मिशन प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग करने वाले पीडीएमसी के अफसरों ने मॉनिटरिंग करने की बजाय केवल ठेका लेने वाली कंपनी को संरक्षण देने का काम किया है। पीडीएमसी ने प्रोजेक्ट के तहत हुए कार्यों की सही ढंग से मॉनिटरिंग आज तक नहीं की। न तो फील्ड विजिट किया, न वार्डों में जाकर कंपनी द्वारा किये गए कार्यों की जांच की।
स्वतंत्र एजेंसी पीडीएमसी के अफसरों की लापरवाही पर आज तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई। एजेंसी को मॉनिटरिंग की एवज में होने वाला भुगतान क्यों नहीं रोका गया ? पीडीएमसी की लापरवाह कार्यप्रणाली को अनदेखा क्यों किया जा रहा है ? ? ?
नगर निगम के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर राजेश पांडेय को अमृत मिशन प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी दी गई है। इतने बड़े प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी के बावजूद ईई ने कभी खुद होकर प्रोजेक्ट के कार्यों की जांच पड़ताल नहीं की। वे साइट पर तभी नजर आते हैं जब विधायक या महापौर उन्हें मौके पर बुलाते हैं। बाकी समय दफ्तर में ही बीत जाता है। ईई राजेश पांडेय के साथ नगर निगम के सब इंजीनियर एआर राहंगडाले और भीमराव भी प्रोजेक्ट का काम देख रहे हैं। लेकिन तीनों इंजीनियरों ने साइट पर काम देखने की बजाय बिलिंग करने पर ज्यादा ध्यान दिया है। प्रोजेक्ट को लेकर लगातार लापरवाही की शिकायतें मिलने के बावजूद इन जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। लापरवाह कार्यप्रणाली के बावजूद इन इंजीनियरों के खिलाफ एक्शन न लेने की वजह क्या है ???
जानकार कहते हैं कि बड़े प्रोजेक्ट लेने वाली कंस्ट्रक्शन कंपनी पर केवल चेतावनी, फटकार जैसी खानापूर्ति की जाएगी। कंपनी के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जाएगा।
दरअसल, सारा खेल विटामिन सी यानी कमीशनखोरी का है।
वैसे भी सिस्टम की कार्रवाई के जाल में छोटी मछलियां ही फंसती हैं। सिस्टम ने बड़े मगरमच्छों के लिए कोई जाल ही नहीं बनाया है। यही वजह है कि नगर निगम में छोटे ठेकेदारों को ही ब्लैकलिस्टेड किया जाता है। बड़े मगरमच्छों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
सवाल और भी हैं … ढेर सारे सवाल हैं … लेकिन सवाल ये है कि … इन सवालों का जवाब कौन देगा ? ? ?