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बस्तर की महिलाएं मोती की खेती करना सीख रही हैं। बस्तर जिला पंचायत और नाबार्ड द्वारा आयोजित राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ’’बिहान’’ योजना के अंतर्गत गरीबी उन्नमूलन महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम के तहत विकासखण्ड बकावण्ड के मंगनार गोठान में तीन महिला स्व-सहायता समूहों को मोती की खेती करने ट्रेनिंग दी जा रही है।
15 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में महिलाओं को सीपों (गुली) के रखरखाव और सीपों की शल्यक्रिया करने के तरीके की जानकारी दी गई। प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुल 30 महिलाओं ने हिस्सा लिया। प्रशिक्षण का संचालन स्वयंसेवी संस्था सोसायटी आफ ट्रायबल वेलफेयर एंड रूरल एजुकेशन के किया।
कैसे करते हैं मोती की खेती
मोती की खेती अक्सर बड़े-बड़े तालाबों, झीलों में की जाती है। अगर आप नई तकनीक और व्यवसायिक तरीके से मोती की खेती करते हैं तो छोटे टैंक से यह काम शुरू किया जा सकता है। आरएएस (रैनिन-एंजियोटेंसिन प्रणाली) के जरिये पानी रिसर्कुलेट किया जाता है। पानी साफ रखने के लिए अमोनिया फिल्ट्रेशन और नाइट्राइट फिल्ट्रेशन का इस्तेमाल किया जाता है।
सीपों की शल्यक्रिया द्वारा उनमें कैल्शियम के छोटे कण प्रत्यारोपित कर उन्हें कुछ दिनों के लिए उचित देखरेख में रखा जाता है। उसके बाद सीपों को छोटे तालाबों या छोटी टंकियों में सावधानी के साथ छोड़ दिया जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में सीपियों के भीतर मोती का निर्माण होता है। इसमें बारह से चौदह माह का समय लगता है। इस दौरान मोती के कृषकों को सावधानी बरतने की जरूरत होती है। सीपियों को उचित मात्रा में भोजन और पानी के रखरखाव की आवश्यकता होती है।
बस्तर के ग्रामीणों के लिए मोती उत्पादन आय का एक अतिरिक्त और सशक्त माध्यम हो सकता है। ग्रामीण अपने पारंपरिक व्यवसाय खेती किसानी के साथ-साथ मोती की खेती से भी अतिरिक्त आय प्राप्त कर आर्थिक रूप से सम्पन्न हो सकते हैं। प्रशिक्षार्थियों के प्रशिक्षण के लिये नाबार्ड के वित्तीय सहयोग से जिलाा पंचायत बस्तर के माध्यम से सोसायटी आफ ट्रायबल वेलफेयर एंड रूरल एजुकेशन संस्था की के मोनिका ने दिया।
उन्होंने बताया कि बस्तर में मोती की खेती के लिए आवश्यक वातावरण और संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। यहां के तालाबों और नदियों में पाये जाने वाले सीपियों (गुली) में वे तमाम गुण मौजुद हैं। मोतियों का उपयोग न केवल आभूषणों में किया जाता है बल्कि इनका उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों में भी किया जाता है। इस तरह बस्तर मोतियों की खेती के लिए देश व प्रेदश में अपनी विशेष पहचान बना सकता है।