द सीजी न्यूज डॉट कॉम
1 अप्रैल यानी गुरूवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ट्वीट के बाद उम्मीद की जा रही थी कि 24 घंटे के भीतर दुर्ग जिले में लॉकडाउन की घोषणा कर दी जाएगी। चंद घंटों बाद घोषणा तो की गई लेकिन कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने 6 अप्रैल से संपूर्ण लॉकडाउन लागू करने का फैसला किया। 6 अप्रैल तक कोरोना और पैर पसारता रहेगा। महामारी की चपेट से लोग भयाक्रांत होते रहेंगे। अस्पतालों में कोरोना के इलाज के नाम पर लूट खसोट का धंधा चलता रहेगा। 6 अप्रैल तक कोरोना वायरस चंद और लोगों की जिंदगी लीलता रहेगा। इसके बाद … जी हां, इसके बाद लॉकडाउन लगाया जाएगा। क्योंकि साहब ने चार दिनों बाद कोरोना से बचने के लिए लॉकडाउन का सुरक्षा चक्र तैयार करने का आदेश जारी किया है।
दुर्ग जिले के लोगों के लिए कोरोना का दूसरा अटैक किसी त्रासदी से कम नहीं है। एक साल पहले कोरोना के शुरुआती अटैक से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है मौजूदा अटैक।
इसके बावजूद जिला प्रशासन और स्वास्थ्य महकमे के अफसरों ने इस महामारी पर नियंत्रण में लेटलतीफी की। महापौर धीरज बाकलीवाल लॉकडाउन की मांग करते रहे। विधायक अरूण वोरा लगातार जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की मीटिंग लेकर अलर्ट करते रहे। इसके बावजूद प्रशासनिक ढीलापन जारी रहा।
खामियाजा दुर्ग जिले की जनता भुगत रही है।
जनप्रतिनिधियों से लेकर अफसरों तक सभी कोरोना के नियंत्रण के लिए लोगों से सावधानी बरतने की अपील कर रहे हैं। मगर, खुद जिला प्रशासन की नाक के नीचे लापरवाही और महामारी से निबटने में लेटलतीफी के साथ बेपरवाह सिस्टम काम कर रहा है। इस संवाददाता ने दो दिन पहले डाटा सेंटर में कोरोना टेस्टिंग सेंटर का जायजा लिया। भीषण गर्मी में डाटा सेंटर के भवन के सामने पार्किंग स्थल पर टेबल लगाकर स्वास्थ्य विभाग की टीम कोरोना की जांच कर रही थी। टेस्ट कराने वाले ज्यादातर लोग फीवर या अन्य बीमारियों से ग्रस्त होकर यहां आए थे। कई बुजुर्ग भी थे। महिलाएं थी। एक दो बच्चे भी थे। कुर्सियां नहीं थी। तेजधूप से बचने के लिए छांव का इंतजाम करने टेंट भी नहीं लगाया गया था। पानी पीने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। पेड़-पौधों की छांव ही एकमात्र सहारा थी … ज्यादातर लोगों को धूप में ही खड़े रहना पड़ रहा था। मौजूदा दौर में देश में सर्वाधिक संक्रमण वाले शहरों में से एक दुर्ग शहर में कोरोना से लड़ने की प्रशासनिक व्यवस्थाएं ऐसी ही हैं … …बेहद लचर … बेहद लापरवाह … बेहद शर्मनाक …
ऐसी अव्यवस्था के बीच जो आशंकाएं मन में थी, वो चंद मिनटों में ही सही साबित हो गई। डाटा सेंटर में कोरोना जांच की अव्यवस्थाओं के बारे में वहां मौजूद वरिष्ठ पत्रकार पवन देवांगन से बातचीत के दौरान ही अचानक देखा कि जांच कराने आए एक बुजुर्ग चक्कर खाकर गिर पड़े हैं। वहां मौजूद एक पुलिसमेन सवाबुद्दीन ने उन्हें उठाया। करीब रखे एक टेबल पर उन्हें सहारा देकर लेटने की व्यवस्था की। बेचैन और परेशानहाल बुजुर्ग को नौजवान पुलिस मेन सहारा देकर छाती और कंधे पर मसाज करते हुए राहत पहुंचाने की कोशिश करते रहे। कोरोना जांच के लिए वहां मौजूद मेडिकल टीम के एक मेंबर ने जिला अस्पताल में फोन किया और डॉक्टर या एंबुलेंस भेजने कहा, मगर 20 मिनट तक कोई नहीं आया। सवाबुद्दीन से बुजुर्ग के बारे में सवाल किया तो उन्होंने बताया कि – हाल ही में पुलिस विभाग से रिटायर हुए हैं। तबियत ठीक न होने पर आज कोरोना टेस्ट कराने के लिए आए थे। शायद धूप और तेज गर्मी के कारण गश खाकर गिर पड़े हैं।
कमोबेश यही हाल सभी कोरोना जांच केंद्रों का है। न बैठने के लिए कुर्सियां हैं, न पानी की व्यवस्था है। ये हाल तब है जब रोज समीक्षा बैठकें हो रही हैं … जब रोज राजधानी में कोरोना की रिपोर्टिंग की जा रही है …जब विधायक अरुण वोरा और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच बार – बार चर्चा हो रही है … रोज वीडियो कांफ्रेंसिंग और न जाने किन किन माध्यमों से दिशा निर्देशों का आदान प्रदान किया जा रहा है … मगर …इन सबका नतीजा शून्य … पूरे प्रशासनिक सिस्टम का भट्ठा बैठा हुआ है …
क्या इतनी अव्यवस्थाएं … इतनी बदइंतजामियां … काफी नहीं थी।
जिले भर में कोरोना संक्रमण की भयावह स्थिति देखते हुए कई सामाजिक-व्यापारिक संगठन, कई जनप्रतिनिधि, कई लोग सोशल मीडिया के माध्यम से तत्काल लॉकडाउन लगाने की मांग कर रहे हैं। यह सिलसिला पिछले 10 दिनों से चल रहा है। 1 अप्रैल को सीएम से हरी झंडी मिलने के फौरन बाद 24 घंटे का मार्जिन टाइम लेकर ( आम जनता को खरीदारी व अन्य व्यवस्थाओं के लिए समय देकर) 3 तारीख को दोपहर या शाम से लॉकडाउन लगाया जा सकता था। लेकिन, जिला प्रशासन ने चार दिनों बाद !!! लॉकडाउन लगाने का फैसला किया।
सवाल उठ रहे हैं … लॉकडाउन लगाने का फैसला चार दिनों बाद !!! … क्या कोई शुभ मुहूर्त है ???