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दुर्ग नगर निगम की सामान्य सभा : राजनीतिक गलियारों में कई सवाल उठने लगे : बड़ा सवाल … क्या कांग्रेस में गुटबाजी का आगाज दोबारा हो चुका है?

द सीजी न्यूज डॉट कॉम

दुर्ग नगर निगम में दो दिनों तक चली सामान्य सभा में बजट पर चर्चा हुई। कई अन्य प्रस्तावों पर भी सदन में फैसले लिये गए। कांग्रेस का बहुमत होने के कारण लगभग सारे प्रस्ताव पारित कर दिये गए। इसके बावजूद सामान्य सभा से कई बड़े उठ रहे हैं। राजनीतिक हलकों में कई सवालों के साथ एक बड़ा सवाल पूछा जा रहा है … क्या कांग्रेस पार्षद दल में फूट पड़ चुकी है? सभापति के रवैये को लेकर भी सवाल उठे हैं।

नगर निगम की सामान्य सभा में कांग्रेस पार्षद दल में दो बातें उभरकर सामने आई। हर हाल में महापौर बनने के लिये आतुर रहने के बाद पद हासिल करने में नाकाम रहे वरिष्ठ पार्षद मदन जैन सामान्य सभा में अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा के दौरान खुलकर विपक्षी पार्षदों के साथ खड़े नजर आए। उन्होंने विपक्ष के सुर में सुर लगातार मिलाया। कांग्रेस पार्षदों के बीच बैठे रहकर वे बार-बार कांग्रेस का खुला विरोध करते रहे। पिछले चार-पांच दशकों से नगर निगम में भाजपा की धज्जियां उड़ाते रहे मदन जैन सामान्य सभा में भाजपा के मुद्दों का समर्थन करते रहे। महापौर न बन पाने के बाद एमआईसी में भी जगह न मिलने की पीड़ा विरोध की टीस बनकर उभरती रही।

दूसरी बड़ी बात कांग्रेस पार्षद दल के अंदरखाने की है। सामान्य सभा की बैठक से दो दिन पहले शिवनाथ किनारे एक होटल में हुई बैठक में कांग्रेस पार्षदों को विधायक अरुण वोरा, शंकरलाल ताम्रकार, आरएन वर्मा सहित अन्य कई वरिष्ठ नेताओं ने एकजुटता की नसीहत दी थी। मगर, इसका कोई असर नहीं हुआ। ज्यादातर कांग्रेस पार्षद दो दिनों में कुल 9 घंटे तक चली सभा (भोजन अवकाश को छोड़कर) के दौरान मौन साधे बैठे रहे। ज्यादातर पार्षदों के तेवर ऐसे थे कि  उन्हें विपक्ष के विरोध से कोई सरोकार ही नहीं है।

कांग्रेस सूत्र पिछले एक साल से ज्यादा समय से यह कह रहे हैं कि कांग्रेस में नाराजगी और असंतोष पनपने की शुरुआत हो गई है। इस असंतोष का पौधा उगाने से लेकर इसमें खाद-पानी देकर हरा-भरा करने में कांग्रेस के ही कुछ वरिष्ठ नेताओं का हाथ है। प्रदेश की राजनीति में प्रदेशाध्यक्ष की कमान संभालते हुए भूपेश बघेल ने कांग्रेसी गुटबाजी को पूरी तरह समाप्त कर दिया था। भूपेश ने न सिर्फ दुर्ग जिला बल्कि समूचे प्रदेश में कांग्रेस को पूरी तरह एक सूत्र में बांधने की दिशा में गजब का काम किया। इसी के बूते पर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जबर्दस्त जीत मिली।

मगर सत्ता हासिल करने के महज ढाई साल बाद दुर्ग में उसी गुटबाजी के दोबारा पनपने की खबरें कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी सूत्र पिछले कुछ महीने से दे रहे हैं। सामान्य सभा में इसके संकेत देखने मिले। पहले से कांग्रेस पार्षद दल की रणनीति तय होने के बावजूद सामान्य सभा में विपक्ष को करारा जवाब देने की बजाय कई कांग्रेस पार्षदों का मौन रहना इस बात को हवा दे रहा है कि सब कुछ सामान्य नहीं है। बड़ा सवाल ये है कि गुटबाजी शुरू करने वालों में कौन-कौन शामिल हैं ? गुटबाजी को हवा देने वाले नेताओं की जमात में कौन-कौन हैं ? 

सभापति की समझ और रवैये पर उठे सवाल 

सभापति की कार्यशैली को लेकर इन सवालों के साथ कई सवाल उठे। नगर निगम के गलियारों में चर्चा चल रही है कि निगम सभापति राजेश यादव ने सामान्य सभा के दौरान तीखे तेवर वाले भाजपा व निर्दलीय पार्षदों को बार-बार बोलने का मौका दिया। उनकी तुलना में कांग्रेस पार्षदों को बोलने का मौका बहुत कम दिया गया। एल्डरमैनों द्वारा बार-बार आग्रह करने के बावजूद आसंदी से उन्हें बोलने नहीं दिया गया।

सत्तापक्ष का विरोध करना विपक्षी पार्षदों को एजेंडा से अलग हटकर दूसरे विषयों पर घंटो तक चर्चा करने के बावजूद सभापति ने उन्हें न रोका, न टोका। एल्डरमैन कृष्णा देवांगन के मुद्दे पर भी पांच मिनट में मुद्दा सुलझ सकता था, खुद नेता प्रतिपक्ष अजय वर्मा ने इसका समाधान देते हुए आसंदी को सलाह भी दी, लेकिन करीब एक घंटे की बहस और शोरशराबे के बाद मामले का पटाक्षेप किया गया। सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह सब पूर्व नियोजित रणनीति के तहत किया गया ? क्या इसे कांग्रेस के गुटबाज नेताओं की रणनीति का हिस्सा माना जाए ?

सामान्य सभा में गिने चुने लोगों को पास देने की परंपरा रही है ताकि वे सदन की कार्रवाई देख सकें। इस परंपरा का कभी पालन नहीं किया गया। पिछले कई साल से सामान्य सभा के दौरान पास के बिना भी राजनीति से जुड़े चंद लोग सामान्य सभा की बैठक में दर्शक दीर्धा में मौजूद रहते थे। पूर्व की बैठकों की तुलना में इस बार कई गुना ज्यादा लोग मौजूद थे।

सामान्य सभा की बैठक जिस हाल के भीतर हो रही थी, उसके बाहर मैदान में 20 से 25 साल आयु के दर्जनों युवकों के जत्थे इधर-उधर घूम रहे थे। कई जत्थे ऐसे भी दिखे जिन्हें न तो नगर निगम के कामकाज या सदन की कार्यप्रणाली की समझ है, न राजनीति की। इन चेहरों का इस्तेमाल सिर्फ हंगामा या हुल्लड़बाजी करने में किया जाता है। इन्हें किसने बुलाया ? किसने न्यौता दिया ? अगर इनमें से किसी भी व्यक्ति द्वारा हुड़दंग करने या ऐसी ही कोई गैरजिम्मेदाराना हरकत कर दी जाती तो इसके लिये किसे जवाबदेह माना जाता ? 

पहले दिन सामान्य सभा के बीच भोजन अवकाश के दौरान ऐसा लग रहा था मानो सर्वदलीय राजनीतिक सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। महंगे होटल के महंगे भोजन का खर्च नगर निगम के खाते से किया जाएगा। पूरे महीने भर काम करने वाले कर्मचारियों को वेतन देने के लिये पैसों का रोना रोने वाले नगर निगम के पैसों की ऐसी बर्बादी किसलिये ? इस विषय पर महापौर धीरज बाकलीवाल और सभापति राजेश यादव के साथ ही पूरी परिषद को गंभीरता से विचार करना होगा।   

इन सवालों का जवाब ऑन रिकार्ड देने कोई भी तैयार नहीं है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि गुटबाजी और असंतोष की शुरूआत हो चुकी है। अंत क्या होगा? यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

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